MOTIVATIONAL STORY AND TRUE STORY OF I.A.S. VARUN BARNWAL, BIOGRAPHY, EDUCATION&MORE
हेलो, दोस्तों यह मेरा तेरहवाँ पोस्ट है आज मैं आपको उस कहानी को बताऊँगा जिसे जान के आप सोचेंगे की की आदमी अगर ठान ले तो कोई लक्ष्य बड़ा नहीं होता चाहें उसके तकलीफ, गरीबी और दर्द कितना भी बड़ा हो -
जीवनी और सच्ची कहानी I.A.S.वरुण बर्नवाल (Biography and True Story of I.A.S. Varun Barnwal) -
यह कहानी हैं उस I.A.S. अधिकारी का जिसने जब अपने लक्ष्य के तरफ अपना पहला कदम रखा तो उसके सर से उसके पिता का साया उठ गया और जिम्मेंदारी और मज़बूरी, गरीबी भी बहुत ज्यादा बढ़ गया था जिसका नाम हैं I.A.S.वरुण बर्नवाल। वरुण का जन्म 5 अक्टूबर 1990 को भारत के महाराष्ट्र राज्य के पालघर जिले में बोइसर शहर में हुआ था। वरुण के पिता का नाम स्वर्गीय जगदीश बर्नवाल और माता का नाम अमरावती बर्नवाल हैं। वरुण दो भाई और एक उनकी बहन भी हैं जो की स्कूल में शिक्षक है। वरुण के पिता का पंचर बनाने का दुकान था जिससे उनके परिवार का गुजारा होता था वरुण को बचपन से ही बहुत गरीबी और जिम्मेंदारी का सामना करना पड़ा था लेकिन उनके माँ ने अपने बेटे वरुण का हौशला कभी कम नहीं होने दिया।
शिक्षा (Education) -
वरुण बचपन से ही पढ़ने में बहुत तेज और बुद्धिमान थे। उनका प्रारंभिक शिक्षा उनके शहर से ही पूरा हुआ जहाँ उन्होंने 10 वी में 89 % के अच्छे अंको के साथ पास किया। और आगे की पढाई 11, 12 वी भी अच्छे नम्बरों से पास किया फिर उन्होंने इंजीनियरिंग करने का सोचा और इंट्रेंस के परीक्षा में उन्होंने 180 /200 नंबर लेकर MIT कॉलेज पुणे(Pune)से अपना इंजीनियरिंग पूरा किया।
पिता की मौत, कठिनाई, मदद और गरीबी में शिक्षा (Father's Death, hardship, help and Education in Poverty) -
वरुण के पिता जी का एक छोटा सा साइकिल पंचर का दुकान था जिससे उनके परिवार की रोजी - रोटी चलता था। वरुण का जब 21 मार्च 2006 को 10 वी का परीक्षा पूरा हुआ उसके 3 दिन बाद ही 24 मार्च 2006 को उनके पिता जी का दिल का दौरा पड़ने से मौत हो जाता हैं जिससे उनके परिवार पर दुःखो का पहाड़ टूट पड़ता हैं घर की जिम्मेंदारी उनके कन्धों पर आ जाता है। जिससे उन्हें अपने पढाई को छोड़ने का फैसला करके अपने पिता जी के दुकान को चलाने का निर्णय लेते हैं और पंचर बनाने का काम शुरु कर देते हैं। जब इनका 10 वी का रिजल्ट आता हैं तो ये अपने स्कूल के टॉपर रहते हैं लेकिन ये अपने पढाई को अब भूल ही जाना चाहते थे क्यूकी पढ़ने के लिए पैसों की जरुरत होता हैं लेकिन दुकान से सिर्फ घर का खर्च ही चलाना मुश्किल होता था और वरुण ये सब बातें अपने दिल में ही रखकर रह जाते थे लेकिन उनकी माँ सब जानती थी क्यूकी वरुण को पढ़ने से बहुत लगाव होता हैं फिर उनकी माँ कहती हैं की पता करों 11 वी दखिला के कितने पैसे लगेंगे।
जब वरुण ने पता किया तो 11 में एडमिशन के लिए डोनेशन ही 10,000 हजार लग रहा था और 600 रुपये महीनें का फीस जो बहुत ज्यादा था उनके पास उतने पैसे नहीं थे। एक दिन जब वरुण दूकान पर काम कर रहें थे तभी वो डॉक्टर जिनका नाम है डॉक्टर काम्पली जो उनके पिता जी का इलाज करते थे उसी रास्तें से जा रहे थे अपने लड़के का एडमिशन करवाने के लिए तो उन्होंने वरुण को देखकर पूछा की वरुण तुम कैसे हो और पढाई कैसा चल रहा हैं क्यूकी वो जानते थे की वरुण बहुत तेज़ और मेधावी छात्र हैं तो वरुण ने सारी बात उनसे बताई की अब मुझे घर चलाने के लिए दुकान पर काम करने के शिवाय और कुछ भी नहीं हैं तब उन्होंने तुरन्त अपने पास से 10,000 रुपये निकाला और वरुण को दे दिया और कहाँ की तुम्हारी जगह यहाँ नहीं है कही और हैं तुम जाओ और उसे पूरा करों। वरुण पैसे लेकर अपने माँ के पास जाते है और सब बातें बताते है तब उनकी माँ कहती हैं की बेटा तुम एडमिशन करवा लो तो वरुण ने कहाँ की दुकान का क्या होगा तो उनकी माँ ने कहाँ दुकान मैं देख लूँगी तब उन्होंने एडमिशन लिया वो भी शीट पूरा होने वाला था लेकिन काफी गुजारिश करने पर एडमिशन हो जाता है। वरुण ने मन में सोच लिया था की अब फीस के पैसे नहीं भरने है मैं खूब मेहनत से पढूंगा और अपना फीस माफ़ करवा लूँगा और ऐसा ही होता है कॉलेज में उनके व्यवहार और पढाई और उनकी मैथ की जो टीचर थी वो वरुण के घर की सारी स्थिति को जानती थी वरुण ने सब उनसे बता दिया था और वो वरुण को बहुत मानती थी वरुण ने एक TV चैनल में बताया की आज भी मैं उनसे राखी बंधवाता हूँ उन्होंने यह बात सबको बता दिया और फिर सारे टीचर और प्रिंसिपल तक को ये बात पता हो गई और फिर उनके पूरे दो सालों की फीस उनके टीचर ने ही मिलकर भरा।
12 वी पास करने के बाद आगे वो इंजीनियरिंग करना चाहते थे क्यूकी वो साइंस के छात्र थे लेकिन उसमें और भी ज्यादा पैसे की जरुरत होती हैं तो उनकी माँ ने कहाँ की बेटा तुम पैसे का चिन्ता मत करों और अपने प्रवेश परीक्षा की तैयारी करों लेकिन फिर भी उनके मन में एक डर रहता था की इतने पैसे कहाँ से आएँगे और फिर उन्होंने अपने प्रवेश परीक्षा को पास करके MIT कॉलेज पुणे को इंजीनियरिंग के लिए चूना जिसका पहले साल का फीस लगभग एक लाख रुपये था। इन दो सालों में उनकी माँ ने अपने दुकान से कुछ पैसे और वरुण की बहन ने स्कूल में पढ़ाकर और ट्यूशन पढ़ाकर कुछ पैसे इकठ्ठा किया था लेकिन इतना काफी नहीं था। वरुण ने एक TV इंटरव्यू में बताया की जहाँ उनका दुकान था (चित्रालय) उस जगह का नाम है वह एक शिवानंद नाम का एक होटल है जिसमें शुकुमार नाम के एक व्यक्ति जो मेरे बड़े भाई के तरह हैं उन्होंने जब सुना तो बाकि पैसों का मदद किये और मेरा एडमिशन हो गया। और उन्होंने बताया की पहले साल में उन्होंने बहुत मेहनत किया और अच्छे मार्क्स ले आया लेकिन दूसरे साल फिर फीस के पैसे जरुरत था तो उन्होंने बताया की बाकि सालों का फीस उनके दोस्तों और उनके पेरेंट्स ने मिलकर भरा उनके कुछ दोस्त अफगानिस्तान और जर्मनी के भी थे लेकिन वो सब वरुण के अच्छे व्यवहार और इनके घर की परिस्थिति को जानते थे वरुण ने अपने बारे में उनसे कुछ नहीं छिपाया और ये सब बातें कहते समय वो रोने लगे और उन्होंने बताया की किताब और अपने ख़र्चे के लिए वो 2 बजे से रात के 10 बजे तक ट्यूशन भी पढ़ाते थे और कुछ पैसे उनकी माँ भी भेजा करती थी।
वरुण के भाई प्रियेश बर्नवाल और उनकी माँ कहती है की जब वरुण को कॉलेज से पैसे के लिए फ़ोन करता था तो अगर एक हजार का जरुरत रहता तो पांच सौ ही बोलता था लेकिन उनकी माँ कहती है की मैं समझ जाती थी और हमेशा उसको अधिक ही पैसा भेजा करती थी।
इंजीनियरिंग में MIT टॉप (MIT Top in Engineering) -
वरुण ने अपने इंजीनियरिंग की पढाई में MIT कॉलेज को टॉप किया और जो एक रिकॉर्ड बना जो बाद में टूटा था उन्होंने 86 % से इंजीनियरिंग पास किया।
नौकरी का ऑफर और I.A.S. का सफर (Job offers and Journey of I.A.S.) -
https://www.upsc.gov.in/ I.A.S. के तैयारी के बारे में जानें।
वरुण ने जब इंजीनियरिंग पास किया तो प्लेसमेंट के समय में उनका प्लेसमेंट डेलॉइट(Delloite) जैसे बड़े कम्पनी में अच्छे पैकेज पे हो गया था और परिवार के भी यही इच्छा थी की वो नौकरी ज्वाइन कर लें पर उनका मन I.A.S. के तरफ जाने लगा था जिसके कारण उन्होंने बहुत से लोगों से मिले जो इसका तैयारी कर रहे थे और फिर उन्होंने कहाँ की अब I.A.S. ही बनना हैं उनके इस फैसले से वो बताते है की उनकी माँ बहुत नाराज़ हो गयी और कुछ महीनों तक उनसे बात भी नहीं किया। जनवरी 2013 से उन्होंने I.A.S. का तैयारी शुरू किया और मई 2013 में प्री का परीक्षा दिया और पहले ही प्रयास में पास कर लिया लेकिन मेन्स के लिए विषय चुनने का था जो उनके समझ में नहीं आ रहा था फिर उन्होंने राजनैतिक शास्त्र को चुना और दिसम्बर 2013 में मेन्स का परीक्षा दिया जो की अच्छा नहीं गया था उन्होंने बताया की सिर्फ 125 प्रश्नों को टच किया था लेकिन जब रिजल्ट आता हैं तो आल इंडिया में 32 रैंक मिला।
वरुण ने बताया की बाद में उनकी माँ ने भी उनके I.A.S. के सफर में मदद करने लगी और वो कहते है उनकी माँ ने कभी भी उनके हौशले को कम नहीं होने दिया। वरुण ने कहाँ की आज वो जो भी है वो अपने भरोसे नहीं लोगों के मदद और आशीर्वाद से है क्यूकी उनके पढाई का खर्चा उनके दोस्त, उनके शिक्षक और उनके जानने वालो ने ही उठाया था।
किताब (Book) -
वरुण ने एक किताब भी UPSC के छात्रों के लिये लिखा हैं जिसका नाम है "Environment of Twenty Pages".
निष्कर्ष (Conclusion) -
हमनें अपने ज़िन्दगी से और लोगो के जीवनी से बहुत सारे बातें सीखते और जानते हैं पर इस कहानी ने अलग ही सीख दिया की अगर आज मकसद कुछ पाने का है और आपके ऊपर उस जीवन देने वाली माँ का हाथ हो तो आपके मदद के लिए ऊपर वाला किसी न किसी को ज़रूर भेजता है बस आप अपने कर्तब्य और लक्ष्य से न भागों।
और कहते हैं न दोस्तों -
"We should help those who are its rightful owners, because with the help a new era started which is a new message of human life"
और हाँ दोस्तों सुरक्षित रहें, और प्लीज दोस्तों लाइक करें, कमेंट करें और शेयर करना ना भूलें।
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